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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।

उत्तर -

वैदिक साहित्य में उपनिषदों का महत्वपूर्ण स्थान है। वैदिक सूक्तों में जिस दार्शनिक विचारधारा का प्रारूप मिलता है उसका विकसित रूप उपनिषदों में दिखायी देता है। उपनिषद् शब्द 'उप' एवं 'नि' उपसर्गपूर्वक सद् धातु में 'क्विप्' प्रत्यय लगाकर बनता है, जिसका अर्थ होता है समीप में बैठना अर्थात् गुरु के समीप बैठकर ज्ञान प्राप्त करना। धातु पाठ में सद् धातु के तीन अर्थ निर्दिष्ट हैं विशरण, गति, अवसादन 1 इस तरह जो विद्या सम्पूर्ण अनर्थों के उत्पादक सांसारिक क्रियाकलापों का नाश करती है, संसार के कारणभूत अविद्या के बन्धन को विशाल करती है और ब्रह्म का साक्षात्कार करवाती है, उसी को 'उपनिषद्' कहा जाता है। उपनिषद् वैदिक साहित्य की चरम परिणति का रूप ग्रन्थ है। वैदिक साहित्य के अन्तिम ध्येय ब्रह्मतत्व का निरूपण होने से इसे वेदान्त भी कहा गया है। कुछ प्रमुख उपनिषद् निम्नलिखित हैं-

ऐतरेयोपनिषद् - इसका सम्बन्ध ऐतरेय ब्राह्मण' से है। ऐतरेय ब्राह्मण के अन्तिम भाग को ऐतरेय आरण्यक कहा जाता है। ऐतरेय आरण्यक में द्वितीय आरण्यक के चतुर्थ से षष्ठ अध्यायों को 'ऐतरेय उपनिषद्' कहते हैं। यह अत्यन्त लघु काव्य है। इसमें तीन अध्याय हैं जिनमें क्रमशः सृष्टि, जीवात्मा तथा ब्रह्मतत्व का निरूपण है। इस उपनिषद् की रचना का मूलाधार ऋग्वेदीय पुरुष सूक्त है। इसमें विश्व को आत्मा से उद्भूत बतलाया गया है।

कौषीतकि उपनिषद् - इस उपनिषद् का सम्बन्ध ऋग्वेद के साथ है। कौषीतकि ब्राह्मण से सम्बन्धित कौषीतकि आरण्यक है। कौषीतकि आरण्यक के तृतीय से षष्ठ अध्याय तक को कौषीतकि उपनिषद् कहते हैं। इसे ही कौषीतकि ब्रह्मणोपनिषद् भी कहते हैं। इस उपनिषद् में कुल चार अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में मृत्यु के बाद जीवात्मा के प्रयाण के देवयान और पितृयान नामक मार्गों का वर्णन है। इसमें चित्र नामक क्षत्रिय राजा ने उद्दालक आरुणि को परलोक की शिक्षा दी है। राजा चित्र यज्ञ में आरुणि को पुरोहित बनाता है। आरुणि अपने पुत्र श्वेतकेतु को भेजता है। वहाँ पहुँचकर चित्र ने पूछा कि लोक में क्या ऐसा कोई गुप्त स्थान है जहाँ तुम मुझे रख सकोगे? क्या लोक में दो मार्ग हैं जिनमें से एक में तुम मुझे लगा दोगे? श्वेतकेतु ने कहा कि मुझे ज्ञात नहीं आचार्य से प्रश्न पूछूंगा। यह कहकर उसने घर लौटकर पिता से प्रश्न पूछा। पिता ने कहा कि मुझे भी उत्तर ज्ञात नहीं है। तब दोनों चित्र के पास जाते हैं चित्र ने उन्हें बताया कि कुछ लोग अच्छे कर्मों के बल से ब्रह्मलोक चले जाते हैं और ब्रह्ममय हो जाते हैं। कुछ लोग स्वर्ग एवं नरक में जाते हैं और कुछ मरने के बाद मृत्युलोक में जन्म लेते हैं। द्वितीय अध्याय में आत्मा के प्रतीक प्राण के स्वरूप का विवेचन है। प्राण ही ब्रह्म है और मन प्राण रूपी ब्राह्मण का दूत है, नेत्र रक्षक है, श्रोत द्वारपाल हैं और वाणी दासी है। तृतीय अध्याय में इन्द्र प्रवर्तन को प्राण और प्रज्ञा का उपदेश देते हैं। चतुर्थ अध्याय में काशिराज अजातशत्रु बालाकि को परब्रह्म का उपदेश देते हैं।

श्वेताश्वतरोपनिषद् - यह उपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद से सम्बन्धित है। इसमें विश्व को ब्रह्मकृत तथा माया का प्रतिरूप माना गया है। इसमें यत्र-तत्र योग के सिद्धान्तों का सम्यक्रूपेण प्रतिपादन प्राप्त होता है। इसकी रचना कठोपनिषद् के बाद की है क्योंकि इसमें कठोपनिषद् के अनेक वंश उद्धृत हैं। इनकी रचना से स्पष्ट होता है कि उपनिषद् अनेक रचनाओं की कृतियों का संग्रह है।

ईशोपनिषद् - यह उपनिषद् शुक्ल यजुर्वेद से सम्बन्धित है। इसके अध्याय का प्रथम मन्त्र 'ईशावास्यम्' से प्रारम्भ होता है अतः इसका नाम 'ईशावास्योपनिषद्' है। ईशावास्योपनिषद् को ही 'ईशोपनिषद्' भी कहते हैं। यह लघुकाय उपनिषद् है किन्तु महत्व की दृष्टि से सर्वोपरि है। इसमें वेद का सार एवं गूढ़तत्व का विवेचन हुआ है। आत्मा के स्वरूप का जितना स्पष्ट विवेचन इस उपनिषद् में हुआ है उतना किसी अन्य उपनिषद में नहीं मिलता है। इसमें विश्व को ब्रह्म तथा माया का प्रतिरूप माना गया है। इसमें यत्र-तत्र योग के सिद्धान्तों का सम्यक रूप से प्रतिपादन प्राप्त होता है। इसकी स्थापना कठोपनिषद् के बाद की है। क्योंकि इसमें कठोपनिषद् के अनेक अंश उद्धत हैं। इसकी रचना से स्पष्ट होता हैं कि यह उपनिषद् अनेक रचनाओं की कृतियों का संग्रह है।

कठोपनिषद् - यह कृष्ण यजुर्वेदीय उपनिषद् है। इसका सम्बन्ध कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा से है। इसमें दो अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय तीन-तीन बल्लियों में बँटा है। इस उपनिषद में प्रसिद्ध यम- नचिकेता आख्यान के माध्यम से जीवन जगत और परम तत्व का सरल हृदयग्राही एवं हितसाधक उपदेश मानव मात्र के कल्याणार्थ प्रस्तुत किया गया है। इसमें श्रेय एवं प्रेय का विवेचन किया गया है। इस उपनिषद का मत है कि मनुष्यों के समक्ष श्रेय तथा प्रेय दोनों वस्तुएँ उपस्थित होती हैं। उनमें से जो व्यक्ति धीर अर्थात् आत्म-कल्याण का इच्छुक होता है वह श्रेयमार्ग का वरण करता है तथा कुत्सित संस्कार वाला व्यक्ति प्रेयमार्ग का वरण करके मानव जीवन के वास्तविक लक्ष्य से च्युत हो जाता है। इस उपनिषद् में रथ रथी के रूपक द्वारा शरीर, आत्मा, मन तथा इन्द्रियों के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाते हुए असत्कार्यों से सदैव पृथक् रहने का उपदेश दिया गया है। अतिथि सत्कार, पितृपरितोष आदि का महत्व भी इस उपनिषद् में प्रतिपादित किया गया है।

तैत्तिरीयोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद तैत्तरीय शाखा से सम्बन्धित तैत्तिरीय ब्राह्मण का अन्तिम भाग तैत्तिरीय आरण्यक है। तैत्तिरीय आरण्यक के दस प्रपाठकों में सप्तम्, अष्टम् एवं नवम् प्रपाठकों को तैत्तिरीयोपनिषद् कहते हैं। इस उपनिषद् में तीन अध्याय हैं जिन्हें क्रमशः शिक्षाबल्ली, ब्रह्मानन्दबल्ली एवं भृगुबल्ली कहते हैं। प्रथम शिक्षाबल्ली में बारह अनुवाक् हैं, ब्रह्मानन्दबल्ली में नौ और भृगुबल्ली में दस अनुवाक् हैं। शिक्षाबल्ली में वर्ण, स्वर, मात्रा, बल आदि के विवेचन के साथ वैदिक मन्त्रों का उच्चारण के नियम तथा स्नातक के लिए उपयोगी शिक्षाओं का निरूपण है। द्वितीय ब्रह्मानन्दबल्ली में ब्रह्मविद्या का निरूपण है। इनमें ब्रह्म के स्वरूप का उल्लेख किया गया है। ब्रह्म आनन्द रूप हैं, उसी से समस्त विश्व की सृष्टि हुई है। यह अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनन्द रूप है। ब्रह्म के स्वरूप को जान लेने पर मनुष्य अपने ही समान सबको समझने लगता है। सारा भेदभाव दूर हो जाता है और वह ब्रह्म से तादात्म्य स्थापित कर लेता है। तृतीय अध्याय भृगुवल्ली है। इसमें भृगु और वरुण का संवाद वर्णित है।

मैत्रायणोपनिषद् - इस उपनिषद का सम्बन्ध कृष्ण यजुर्वेद की मैत्रायणी शाखा के साथ है। इसमें सात अध्याय हैं। इस उपनिषद् की रचना अधिकांश रूप में गद्यमय है। इस उपनिषद में सांख्य दर्शन को सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। इस उपनिषद की विषय-सामग्री तीन प्रकार के प्रश्नों के उत्तर में निहित है। प्रथम प्रश्न में पूछा गया है कि आत्मा किस प्रकार शरीर में प्रवेश करती है? उत्तरस्वरूप कहा गया है कि स्वयं प्रजापति अपने द्वारा विरचित शरीर में जीवन संचार करने के लिए पंच-प्राणों के रूप में प्रविष्ट होता है। दूसरा प्रश्न है- परमात्मा किस प्रकार भूतात्मा बनता है? इस प्रश्न का समाधान सांख्य सिद्धान्तानुसार देने का प्रयास किया गया है जिसके अनुसार आत्मा प्रकृति के गुणों से पराभूत होकर आत्म रूप को विस्मृत हो जाता है परिणामतः आत्म ज्ञानार्थ प्रयासरत रहता है। तृतीय प्रश्न है कि सांसारिक दुःखों से मुक्ति कैसे प्राप्त की जा सकती है? उत्तर में कहा गया है कि वर्ण-व्यवस्था एवं आश्रम व्यवस्था के प्रति निष्ठावान व्यक्ति ही ब्राह्मण एवं मोक्ष के अधिकारी होते हैं। मोक्ष अथवा ब्रह्मज्ञान ही दुःखों से मुक्ति दिला सकता है।

महानारायोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद से सम्बन्धित तैत्तिरीय आरण्यक का दर्शम प्रपाठक 'महानारायोपनिषद्' कहा जाता है जो इस आरण्यक का परिशिष्ट भाग माना जाता है। यह सायण भाष्य के साथ प्रकाशित है। इसमें अनुवाकों की स्थिति अस्त-व्यस्त है। इसमें द्रविणों के अनुसार ६४ आन्ध्रों के अनुसार ८०, कर्णाटकों के अनुसार ७४ अनुवाक् हैं। इस प्रकार इसके तीन विभिन्न पाठ मिलते हैं किन्तु इनमें आन्ध्र पाठ की ही मान्यता है। इस उपनिषद् में नारायण को परमात्म तत्व के रूप में वर्णित किया गया है। इसमें आत्मा का विशद विवेचन है। इस उपनिषद् के अनुसार, एक ही परमसत्ता है वही सब कुछ है। इसमें सत्य, तपस्, दया, दान, धर्म, अग्निहोत्र, यज्ञ आदि विविध विषयों की महत्वपूर्ण विवेचना है। इसमें तत्वज्ञानी के जीवन का यज्ञ के रूप में चित्रण है जिसके अनुसार इसकी 'याज्ञिकी' उपनिषद् नाम की सार्थकता प्रतीत होती है।

वृहदारण्यकोपनिषद् - यह उपनिषद् यजुर्वेद से सम्बन्धित है। शतपथ ब्राह्मण के अन्तिम छः अध्याय ही इस उपनिषद् के नाम से कहे गये हैं। यह पर्याप्त विशालकाय होने से अन्वर्थ नाम भी है। यह तीन भागों में विभक्त है, प्रत्येक भाग में दो-दो अध्याय हैं। प्रथम भाग मधुकाण्ड है। द्वितीय भाग याज्ञवल्क्य काण्ड है तथा तृतीय भाग 'खिलकाण्ड' है जो परिशिष्ट मात्र माना जाता है, इस उपनिषद् में प्राण को आत्मा का प्रतीक माना गया है। इसमें आत्मा तथा ब्रह्मा से विश्व की उत्पत्ति तथा आत्मा की प्रकृति का निरूपण है।

केनोपनिषद् - यह सामवेद की जैमिनीय शाखा के ब्राह्मण ग्रन्थ का नवम अध्याय है। इसके दो भाग हैं। प्रथम भाग पद्यमय है। यह वेदान्त के विकास काल की रचना प्रतीत होती है। द्वितीय भाग गद्यमय है और अत्यन्त प्राचीन है। प्रत्येक भाग में दो खण्ड हैं। इस प्रकार कुल चार खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में उपास्य ब्रह्म और निर्गुण ब्रह्म में अन्तर बताया गया है। द्वितीय खण्ड में ब्रह्म के रहस्यमय स्वरूप का विवेचन है। तृतीय और चतुर्थ खण्डों में उमा हैमवती के रोचक आख्यान द्वारा परंब्रह्म की सर्वशक्तिमत्ता का विवेचन है।

मुण्डकोपनिषद् - यह उपनिषद् अथर्ववेद की शौनक शाखा के अन्तर्गत आता है। सम्पूर्ण उपनिषद तीन मुण्डकों में विभक्त है तथा प्रत्येक मुण्डक दो-दो अध्यायों में विभक्त है। इस उपनिषद् का नामकरण 'मुण्ड' साधुओं के नाम पर हुआ है जो जैन तथा बौद्ध धर्म के उत्तरकालीन साधुओं की भाँति सिर मुड़ाये रहते थे। इस उपनिषद में सृष्टि की उत्पत्ति तथा ब्रह्मतत्व का विवेचन किया गया है।'

प्रश्नोपनिषद् - यह उपनिषद् अथर्ववेद की पिप्पलाद शाखा से सम्बन्धित है। सम्पूर्ण उपनिषद् गद्यमय है। कहीं-कहीं पद्य भी प्राप्त होते हैं। इसमें पिप्पलाद ऋषि ने भरद्वाज के पुत्र सूवेश्म, शिवि के पुत्र सत्यवान्, कोशलदेशीय, आश्वलायन, विदर्भ निवासी भार्गव, कात्यायन एवं कबन्धी इन छः जिज्ञासु ऋषियों के छः प्रश्नों का विचारपूर्ण उत्तर प्रस्तुत किया गया है।

उपर्युक्त उपनिषदों के अतिरिक्त भी अन्य अनेक उपनिषदों की सत्ता प्रतीत होती है। परवर्ती उपनिषद् युक्तिकोपनिषद् में एक सौ आठ उपनिषदों के नाम की सूची दी गयी है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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